नज़राना इश्क़ का (भाग : 28)
रात काफी गहरी हो चुकी थी, मगर निमय की आंखों से नींद कोसों दूर थी, वह बार बार फरी की उस मुस्कान को याद करके बेहद खुश हुआ जा रहा था, उसकी अपनी खुशी छिपाने की सारी कोशिशें नाकामयाब होती जा रही थी, इसलिए आज वह अपने कमरे में सोया हुआ था। काफी देर सोचने समझने के बाद उसने फरी को मैसेज किया।
"हाय..!"
और उसके रिप्लाई का इंतेज़ार करता रहा, पर उसे लम्बा इंतेज़ार नहीं करना पड़ा क्योंकि अगले ही कुछ सेकिंडस बाद फरी का रिप्लाई भी आ गया।
"हां हाय..!"
"तुम अब तक सोई नहीं..!"
"नहीं…! कोशिश तो की, पर ये जगह मेरे लिए नई है शायद इसलिए नींद नहीं आ रही है।"
"तुम कहाँ हो..?"
"भाई के घर..! मैंने भाई को कई बार कहा कि मुझे मेरे घर तक छोड़ दें पर वे नहीं माने…!" फरी ने रिप्लाई किया।
"हाहाहा… हां..! वो बहुत जिद्दी है न!" निमय ने ढेर सारे हँसने के इमोजीस के साथ रिप्लाई दिया, फरी से चैट करते वक़्त उसकी खुशी कई गुनी बढ़ चुकी थी।
"हां..! सो तो हैं। मैं किस्मतवाली हूँ जो मुझे ऐसे भाई मिले..!"
"हां मैं भी…!"
"भला आप क्यों..?" फरी उसका अटपटा जवाब देखकर पूछी।
"दोस्त हूँ यार…! और तुम ये आप आप कहना बन्द करो..!" निमय ने उत्तर दिया।
"हाँ पर…! थोड़ा टाइम तो लगेगा ही न!"
"कम से कम मैसेज में तो..!"
"हाँ ठीक है..! मेरे लिए ये बहुत मुश्किल है, क्योंकि मैंने आज तक किसी को भी तुम कहा ही नहीं है, न ही किसी से कभी बातें की हैं।" फरी ने अपनी बात समझाने की कोशिश की।
"इन फैक्ट मैं तो फ़ोन यूज़ तक भी नहीं करती..! बस आज नींद नहीं आ रही थी तो…!" फरी का अगला मैसेज आया।
"ओह..! तभी तो कहूँ इतना जल्दी रिप्लाई कैसे आ गया..! मुझे तो उम्मीद ही नहीं थी..!"
"हाँ..! क्योंकि मुझे बात करने की आदत नहीं है…!"
"पर अब तो सीखना पड़ेगा..!"
"किसलिए..?" फरी ने पूछ लिया। "मतलब हाँ! अब सीखना तो पड़ेगा ही!" फिर उसने अपनी बात की क्लेरिफिकेशन दी।
"कोई बात नहीं..! रात बहुत हो गयी है, सो जाओ! वैसे भी तुम्हें ज्यादा बात करने की आदत नहीं है..!" निमय बात करने की बेहद इच्छा होने के बाद भी बोला।
"हाँ! आप भी सो जाओ..!" फरी ने रिप्लाई किया, उसके जवाब से लग रहा था मानो वो भी बात करना चाहती थी।
"गुड नाईट.. राधे राधे..!" निमय ने मुस्कुराते हुए मैसेज किया।
"गुड नाईट निमय जी..!" फरी ने मेसेज किया फिर वो ऑफलाइन चली गयी। फरी की प्रोफाइल पर एक गुड़िया की हाथों में सुनहली तितली की पिक लगी हुई थी, निमय उसे देखता रहा, ना जाने उसे ऐसा करने से बेहद सुकून मिल रहा था। वह फरी के नाम और उसकी प्रोफइल पिक देखते देखते कब गहरी नींद में सो गया उसे कुछ पता भी न चला।
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फरी अब तक जाग रही थी, कई करवट बदलने के बाद भी उसे नींद नहीं आ रही थी। उसने फ़ोन में व्हाट्सप्प खोल कर देखा निमय कुछ मिनट पहले ही ऑफलाइन हो चुका था, न जाने क्यों वह उसको मैसेज करने बड़ी, मैसेज टाइप कर लिया मगर सेंड करने से पहले कुछ सोचा और फिर टाइप्ड मैसेज को डिलीट कर फ़ोन साइड में रख दिया और अपने बैग से डायरी निकाल कर बैठ गयी।
"हे डायरी…!
तुम्हें यकीन नहीं होगा आज मैं कितनी खुश हूं, मैंने परिवार के साथ कुछ दोस्त भी पा लिया.. अब तुम अकेली नहीं हो जो मुझसे इतना तंग हुआ करेगा। मुझे अपने मम्मी के किये पर शर्मिंदगी हो रही है डायरी.. जानती हो उन्होंने क्या किया अपनी जान से ज्यादा प्यार करने वाले पापा को धोखा देकर मार डाला, मैं जानती हूँ ये सब उन्होंने खुद नहीं किया, उनसे करवाया गया पर तुम्हीं बताओ क्या मुहब्बत में लोग इस कदर पागल हो जाते हैं कि अपने अपनो को तकलीफ देने से जरा भी नहीं चूंकते…! किसी ने उनकी मुहब्बत का नाजायज फायदा उठाया है! उसने उनसे उनका परिवार छीन लिया, और मुझसे मेरा…! कभी कभी मेरा दिल करता है मैं बदला लूँ.. पर किससे.. कैसे..? मेरी माँ ने मुझे बदला लेने जैसा कुछ सिखाया ही नहीं और बाकी की दुनिया से मैं कुछ सीखी ही नहीं।
मगर यहां सब अच्छे हैं, उन्होंने मुझे अपना लिया, पर सच कहूं तो मुझे घुटन हो रही है, मुझसे साँस तक नहीं लिया जा रहा है, अगर मैं सच नहीं जानती तो भी मैं इसी तकलीफ से गुजर रही होती..! मैं चाहकर भी इसे मानने को तैयार नहीं हो पा रही कि मेरी माँ ने ऐसा किया.. मैं रो रहीं हूँ डायरी पर किसी को दिखा नहीं सकती..! मेरा दिल बिलख बिलखकर रो रहा है, ये बातें मुझे कचोट रही हैं, अंदर से खाये जा रही हैं।
मेरी माँ कितनी किस्मतवाली थी जो उन्हें ऐसे पापा मिलें, मगर शायद उन्हें बदकिस्मती को ही गले लगाना था, मुझे तो पता ही नहीं पापा क्या होते हैं, उनका प्यार क्या होता है..! मगर मैं इसके लिए माँ को दोष नहीं दूंगी.. उन्होंने जो भी किया, कर ही दिया, उसकी सजा भी भुगत ली। अब अपने दुखों का कारण उन्हें मानना अंधी मूर्खता से अधिक कुछ नहीं है।
पर मुझे परिवार मिला, प्यार मिला..! भाई के साथ घूमने गयी थी। वहां निमय जी और जाह्नवी से मिली। वे दोनों काफी अजीब पर बहुत बेहतरीन इंसान हैं, ना जाने क्यों उनसे अपनापन महसूस होता है। वे भी अपने ही लगते हैं, खैर होली आ गयी है डायरी…. तुम्हें भी हैप्पी होली! आई विश कि मैं अपने अपनों के लिए कुछ कर सकूं..!
चलो अब सो जाते हैं, रात बहुत हो गयी..!
गुड नाईट डायरी..!"
काफी कुछ लिखने के बाद फरी ने डायरी को वापस बैग में रख दिया। वह फिर से सोने की कोशिश करने लगी मगर फिर नाकामयाब रही। नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी.. वह काफी देर तक करवटें बदलती रही, तभी उसे महसूस हुआ किसी ने उसके सिर पर हाथ फेरा, उसने उठकर देखा तो विक्रम की मम्मी उसके बगल में बैठी हुई थी और उसका सिर सहला रही थी।
"आप यहां..!" फरी आश्चर्य से पूछी।
"वो क्या है कि नींद नहीं आ रही थी तो…!" रजनी जी ने धीमे से मुस्कुराते हुए कहा।
"हाँ..! कोई बात नहीं..!" फरी अपनी सारी उलझने छिपाकर मुस्कुराते हुए बोली।
"मैं यहां पर सो सकती हूँ..!" रजनी जी ने फरी की ओर देखते हुए पूछा।
"ह...हाँ! ये भी कोई पूछने की बात है!" फरी ने दाँत दिखाकर जवाब दिया।
"चलो अब सो जाओ बेटा…!" रजनी जी उसके पास में सोते हुए कहा। रजनी जी के पास होने से फरी काफी अच्छा महसूस कर रही थी, उसे अलग सा सुकून महसूस हो रहा था। रजनी जी उसके गालों को सहलाते हुए बड़े ही सुरीले स्वर में धीमे धीमे प्यारी सी लोरी सुनाने लगीं..!
"हो चाँद आना तुम.. नींद ले आना तुम...
बिटिया मेरी प्यारी गुड़िया, सुलाना तुम...
मीठे सपनो की टोकरी नई सजाना तुम..
निंदिया धीमे धीमे चुपके से चली आना तुम…"
फरी ने सालों बाद लोरी सुनी थी, रजनी जी का ममतामयी स्पर्श उसके रोम रोम को पुलकित कर रहा था, मीठी लोरी सुनते सुनते कब वह मीठी नींद की आगोश में चली गयी उसे कुछ पता भी न चला। सोने के बाद भी उसके होंठो पर गजब की मुस्कान थी, चेहरा ऐसा लग रहा था मानों कोई परी मुस्कुरा रही हो, उस मासूम चेहरे को देखते देखते रजनी जी भी नींद की आगोश में कैद हो गईं।
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सुबह हो चुकी थी, मगर आज की सुबह कुछ ज्यादा ही खुशमिजाज और रंगीन थी। क्योंकि आज होली थी। आसमान यूँ लग रहा था मानों नीला चादर ओढ़ रखा हो, बादलों की सफेदी भी खूब छाई हुई थी, आज का मौसम थोड़ा और सुहाना था, सूर्यदेव अब तक बादलों के पीछे से नहीं निकले थे जिस कारण मौसम थोड़ा ठंडा भी था। आसमान में गोते लगा रही पंछियों ने भी शायद आज भांग पी रक्खा था, सुबह ऐसी थी मानों अभी अभी जाम चढ़ाकर आयी हो, कुल मिलाकर यह दिन, अन्य दिनों से अलग न होते हुए भी बहुत अलग सा लग रहा था। तभी जाह्नवी दरवाजा खोलकर हड्डियां अकड़ाते हुए बाहर निकली। निमय बाहर फ़ोन लेकर बैठा हुआ था, मम्मी पापा किचेन में बैठे पूरे दिन का प्लान कर रहे थे।
"ओये घोंचू…! पता है आज क्या है?" जाह्नवी, निमय को धक्का देते हुए उसके पास बैठते हुए बोली।
"नहीं..! आज अंधा दिवस है क्या?" निमय ने मुँह बनाया।
"नहीं…! वो होता तो तेरी पूजा ना कर रही होती..!" जाह्नवी मुँह बनाते हुए बोली।
"तेरी तो…! पीट जायेगी बेटा जरा बच के रहा करो..!" निमय ने आँख तरेरते हुए कहा।
"देख लो मम्मी..! ये घोंचियारखाना मुझे पीटने की धमकी दे रहा है..!" जाह्नवी जमाने भर की मासूमियत समेटकर निमय की शिकायत लगाते हुए बोली।
"ओ.. देख लो इसका एक तो बेअक्ल ऊपर से सिर पर चप्पल..!" निमय ने उसे मारने के लिए हाथ उठाता हुआ मुँह बनाकर बोला।
"छू कर तो दिखा…!" जाह्नवी उसको आंखे लाल कर दिखाती हुई बोली।
"उल्टा चोर कोतवाल को डांटे…!"
"जिसके हाथ में डंडा वही भैंस हांके..!"
"लो तुमने खुद ही अपने लायक काम बता दिया.. जा यही करना..!" निमय दांत फाड़ते हुए बोला।
"मम्मी…! अब इसका दाँत मुँह टूट-फुट जाये तो इल्जाम मुझपर बिल्कुल नहीं आना चाहिए…" जाह्नवी चिल्लाती हुई बोली।
"कोशिश कर के देख ले बंदरिया..! किसका दांत टूटेगा ये सबको पता है..!" निमय उसके और करीब जाते हुए बोला।
"हाँ हाँ बड़ा आया हीरो अलोम का कॉपी..!" जाह्नवी मुँह बनाकर चिढ़ाते हुए बोली।
"हीरो अलोम..!" निमय ने उसको गौर से देखा, मानो पूछ कर पक्का कर रहा हो। "ये कैसा बकवास नाम है यार, मतलब कुछ ढंग का कंपरिज़न भी तो कर ही सकती है ना…!"
"अपने ढंग तो देख लो जनाब…हाहाहाहा!" जाह्नवी उसको उसके कपड़ो की ओर ध्यान दिलाते हुए बोली, उसने टी शर्ट उल्टी पहन रखी थी।
"निम्मी, जानी..! आज तो अपनी ये शरारत बन्द करो! दोनो किचेन में आओ जल्दी..!"मिसेज़ शर्मा ने जब देखा उन दोनों का झगड़ा खत्म होने का नाम नहीं ले रहा तो दोनो की बात काटते हुए बीच में बोल पड़ी।
"आती हूँ मम्मी…! तू भी चल आलसियों का देवता…!" जाह्नवी, निमय का हाथ पकड़कर खींचते हुए बोली। पर निमय ने झटकते हुए अपना हाथ छुड़ा लिया।
"श्रीराम जानकी….!" निमय गुनगुनाया..!
"बैठे हैं किचन में…!" जाह्नवी उसकी बात बीच से काटती हुई बोली।
"ये क्या था…!" निमय उसको घूरते हुए बोला।
"मम्मी पापा देख लो ये घोंचू आप दोनो का नाम ले रहा है, और ऊपर से मुझे धमका भी रहा है!" जाह्नवी निमय को पीटते हुए बोली।
"कसम से झूठी…! तुझे बनाने के बाद भगवान भी कहता होगा… ये कैसी आफत बन गयी राम..!" निमय झल्लाकर उसे चिढ़ाते हुए बोला।
"भगवान तेरी तरह खाली नहीं हैं जो ये सब सोचें, ये सब तुम जैसे फुरसतिये करते हैं!" जाह्नवी ने मुँह बनाया।
"वो भजन था…! इतने प्यारे भजन में अपनी नाक घुसा दिया तुमने..!" निमय ने मुँह बनाया।
"निमय, जाह्नवी… तुम दोनो यहां आ रहे हो या मैं आऊं..?" मिस्टर शर्मा ने गुस्से से चिल्लाकर कहा। दोनो किचेन की ओर भागे।
"आप फिर से बेसन भूल गए न..! उफ्फ आपकी ये भूलने की आदत…!" मिसेज़ शर्मा (जानकी जी) मिस्टर शर्मा (श्रीराम जी) पर बरस रही थी। "इसलिए मैंने सारे सामान की लिस्ट लिखकर दी थी फिर भी आप ठहरे महाभुल्लकड़ इंसान…!"
"ऐसा नहीं है बाबा! वो क्या है कि पर्ची यहीं घर पे ही छूट गयी थी, वो तो मेरी याददाश्त तेज है कि बाकी सबकुछ लेकर आ गया…!" श्रीराम जी ने हँसते हुए जवाब दिया।
"हाँ बिल्कुल सब कुछ ले आये, बस बेसन, मैदा और सेवई छूट गयी…!" जानकी जी ने मुँह बनाया।
"क्या हुआ पापा…!" जाह्नवी ने पूछा।
"क्या हुआ मम्मी..!" निमय ने पूछा।
"कुछ नहीं बस थोड़ा सा सामान छूट गया है, तुम जल्दी से जाकर ला सकते हो क्या…?" श्रीराम जी ने निमय की ओर देखते हुए कहा।
"जी बिल्कुल पापा…!" निमय ने सिर झुकाए मुस्कुराकर कहा, थोड़ी देर में ही वह सामान की लिस्ट लेकर मार्किट चला गया।
"जानू…! तुम अपनी मम्मी की हेल्प करो बेटा…! और मुझे भी थोड़ा इनके प्रकोप से बचा लिया करो..! वरना किसी दिन तुम्हारे पापा का टाँय टाँय फिस्स बोला देंगी तुम्हारी मम्मी..!" श्रीराम जी जाह्नवी को बिठाते हुए बोले।
"हाँ हाँ बड़ी शिकायत की जा रही है बिटिया से…!" जानकी जी ने मुँह बनाकर कहा। "अब शिकायत पूरी हो गयी तो मेरी थोड़ी मदद भी करा दो..!"
"हाँ बिल्कुल..! क्यों नहीं..!" कहते हुए दोनो भी काम में लग गए।
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निमय मार्किट पहुँच चुका था, होली होने के कारण भीड़भाड़ थोड़ी ज्यादा थी जिस कारण दुकान पर काफी समय लगने का चांस था इसलिए वह रोड के दूसरी ओर की दुकान पर चला गया। भीड़ हर जगह बरकरार थी मगर यहां पहली दुकान से थोड़ी कम थी।
निमय जल्दी जल्दी सारा सामान लेकर जेब्रा क्रासिंग से रोड क्रॉस कर रहा था, तभी उसे एक कार बहुत तेजी से अपनी ओर आती दिखाई दी, वह तेजी से भागा मगर पूरी तरह रोड पार नहीं कर पाया, कार उसे जोरदार टक्कर मारकर तेजी से निकल गयी, निमय की बचने की लाख कोशिश के बाद भी वह नहीं बच सका। टक्कर लगते ही सब सामान वहीं सड़क पर बिखर गया।टक्कर से अनियंत्रित निमय सड़क के पास लगे स्ट्रीट लाइट के खम्भे से जा टकराया, उसके सिर से बहुत खून बहने लगा, आसपास के एक लोगों ने उसे घेर लिया, कुछ लोग मदद करने आगे भी बढ़े..! निमय खुद को संभालने की कोशिश कर रहा था, पर उसे सबकुछ भारी भारी सा लगने लगा था, उसका खुद से नियंत्रण छूट रहा था, वह कुछ बोलने की कोशिश करके भी बोल नहीं पा रहा था, सुनाई देना धीरे धीरे बन्द होता जा रहा था, उसकी आँखों के आगे काला अंधेरा छाता गया, वह गहरी बेहोशी की गर्त में खोता गया, उसकी नब्ज शून्य होती जा रही थी। आसपास खड़े लोगों में से कुछ के पास दिल भी था, कोई एम्बुलेंस को कॉल कर रहा था। जिस दुकानदार से वह सामान लेकर आया था वह उसे हैरत भरी निगाहों से देखता रहा, उसे यकीन नहीं हो रहा था एक ही पल में क्या हो गया..! मगर देखने वालों को ऐसा लगा जरूर था कि उस कार वाले ने इसे जानबूझकर टक्कर मारी थी, क्योंकि पूरी सड़क खाली ही थी ऐसे में भी उसने निमय को टक्कर मार दिया, यह बात समझ नहीं आ रही थी।
क्रमशः….!
🤫
01-Mar-2022 12:20 AM
वेरी गुड स्टोरी, मजा आ रही है पढ़ कर, ये क्या हुआ लास्ट में,बस निमय ठीक हो,
Reply
मनोज कुमार "MJ"
01-Mar-2022 06:26 PM
Ji shukriya
Reply
Pamela
15-Feb-2022 12:50 AM
Oh my god ये क्या हुआ... कहानी में। निमय ठीक रहेगा या नही कहानी दिल छू रही है।
Reply
मनोज कुमार "MJ"
01-Mar-2022 06:26 PM
Thank you so much ❤️
Reply
Inayat
13-Feb-2022 11:37 PM
वेरी गुड स्टोरी है आपकी
Reply
मनोज कुमार "MJ"
01-Mar-2022 06:27 PM
Thanks
Reply